जीवन में एक बच्चे का होना बहुत जरूरी है लेकिन अगर इसके हम पीछे झांक कर देखें तो सिर्फ एक बच्चे का होना और न होना किसी की जिंदगी को बदल कर रख देता है। ये हमारी अपरिपक्वता की निशानी ही कही जायेगी। जीवन में सिर्फ बच्चों के लिए रिश्तों की सारी मर्यादा और गाम्भीर्य को हम कैसे नकार सकते हैं? वैसे तो हम पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने के लिए बिना सोचे समझे लग जाते हैं चाहे हम उसके पीछे की पृष्ठभूमि से अवगत हों या न हों लेकिन जहाँ हम अपने दकियानूसी विचारधारा के चलते इतना गंभीर फैसला कैसे ले सकता है ?
कुछ दिन पहले की बात है वो मेरी परिचित की बेटी है। उसको शादी के कई साल तक बच्चे नहीं हुए तो सब तरह की दवा और दुआ की गयी और तब भी सफलता न मिली तो बच्चे को गोद लेने की बात सोची। यहाँ तक तो हम उनके व्यवहार को उचित दृष्टि से देख सकते हैं लेकिन गोद मिलना और न मिलने में उस लड़की का कोई अपराध तो नहीं है, फिर उनको पहली पसंद के अनुसार लड़का ही चाहिए था और न हो तो बहुत मजबूरी में लड़की भी ली जा सकती है। ये उनकी प्राथमिकताएं थी। उन्हें एक बच्ची की गोद देने वाले के विषय में ज्ञात हुआ और उससे संपर्क किया गया और वह महिला ६ लाख में बच्ची गोद देने के लिए राजी हो गयी लेकिन उसके परिवार को जैसे ही पता चला कि ये लोग बच्चे के लिए बहुत उत्सुक है तो उन लोगों ने अपनी मांग १२ लाख कर दी। ६ लाख तक तो गोद लेने वाला परिवार तैयार था लेकिन १२ लाख की मांग पूरी करना शायद उनके वश की बात न थी तो उन्होंने मना कर दिया लेकिन सबसे बुरा उन्होंने ये किया कि उन्होंने अपनी बहू को मायके भेज दिया हमेशा के लिए।
मुझे जब ये ज्ञात हुए तो बहुत ही कष्ट हुआ लेकिन उन लोगों की सोच पर भी बहुत क्रोध आ रहा है कि क्या बच्चे न होने के बाद जीवन की इति है अगर नहीं तो कोई कैसे १२ साल तक किसी को घर में बहू और पत्नी के साथ रहने के बाद इस तरह से त्याग सकता है। हम किसी मुद्दों पर अभी भी इतने ही पिछड़े हुए हैं ? अगर नहीं तो उस लड़की का भविष्य क्या है ? नौकरी वह नहीं करती है और आत्मनिर्भर भी नहीं है। घर में रखने को तैयार नहीं , उससे पहले भी उसको इतना प्रताड़ित किया जा चूका है कि वह खामोश हो चुकी है। वह किसी से बोलने , मिलने या कहीं भी जाने में कोई रूचि नहीं रखती है। धीरे धीरे वह अवसाद की स्थिति में जा रही है।
उसकी काउंसलिंग करना भी आसान नहीं है क्योंकि वह किसी से भी मिलना ही नहीं चाहती है। मैं तो समझती हूँ कि काउंसलिंग की जरूरत उस लड़की को नहीं बल्कि उसके पतिऔर घर वालों को है। हम प्रगतिशील होने का दावा तो करते हैं लेकिन अगर ऊपरी आवरण उतार कर देखें तो हम आज भी सदियों पुराने मिथकों को अपने जीवन में गहराई से जड़ें जमाये हुए पाते हैं।
कुछ दिन पहले की बात है वो मेरी परिचित की बेटी है। उसको शादी के कई साल तक बच्चे नहीं हुए तो सब तरह की दवा और दुआ की गयी और तब भी सफलता न मिली तो बच्चे को गोद लेने की बात सोची। यहाँ तक तो हम उनके व्यवहार को उचित दृष्टि से देख सकते हैं लेकिन गोद मिलना और न मिलने में उस लड़की का कोई अपराध तो नहीं है, फिर उनको पहली पसंद के अनुसार लड़का ही चाहिए था और न हो तो बहुत मजबूरी में लड़की भी ली जा सकती है। ये उनकी प्राथमिकताएं थी। उन्हें एक बच्ची की गोद देने वाले के विषय में ज्ञात हुआ और उससे संपर्क किया गया और वह महिला ६ लाख में बच्ची गोद देने के लिए राजी हो गयी लेकिन उसके परिवार को जैसे ही पता चला कि ये लोग बच्चे के लिए बहुत उत्सुक है तो उन लोगों ने अपनी मांग १२ लाख कर दी। ६ लाख तक तो गोद लेने वाला परिवार तैयार था लेकिन १२ लाख की मांग पूरी करना शायद उनके वश की बात न थी तो उन्होंने मना कर दिया लेकिन सबसे बुरा उन्होंने ये किया कि उन्होंने अपनी बहू को मायके भेज दिया हमेशा के लिए।
मुझे जब ये ज्ञात हुए तो बहुत ही कष्ट हुआ लेकिन उन लोगों की सोच पर भी बहुत क्रोध आ रहा है कि क्या बच्चे न होने के बाद जीवन की इति है अगर नहीं तो कोई कैसे १२ साल तक किसी को घर में बहू और पत्नी के साथ रहने के बाद इस तरह से त्याग सकता है। हम किसी मुद्दों पर अभी भी इतने ही पिछड़े हुए हैं ? अगर नहीं तो उस लड़की का भविष्य क्या है ? नौकरी वह नहीं करती है और आत्मनिर्भर भी नहीं है। घर में रखने को तैयार नहीं , उससे पहले भी उसको इतना प्रताड़ित किया जा चूका है कि वह खामोश हो चुकी है। वह किसी से बोलने , मिलने या कहीं भी जाने में कोई रूचि नहीं रखती है। धीरे धीरे वह अवसाद की स्थिति में जा रही है।
उसकी काउंसलिंग करना भी आसान नहीं है क्योंकि वह किसी से भी मिलना ही नहीं चाहती है। मैं तो समझती हूँ कि काउंसलिंग की जरूरत उस लड़की को नहीं बल्कि उसके पतिऔर घर वालों को है। हम प्रगतिशील होने का दावा तो करते हैं लेकिन अगर ऊपरी आवरण उतार कर देखें तो हम आज भी सदियों पुराने मिथकों को अपने जीवन में गहराई से जड़ें जमाये हुए पाते हैं।