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सोमवार, 13 सितंबर 2010

हिंदी दिवस २००६ : मौत के साए में !

        किसी दिन से ऐसी यादें जुड़ जाती हैं कि कभी पीछा नहीं छोड़ती हैं. ऐसा ही था २००६ का हिंदी दिवस.  उस बार मुझे हिंदी दिवस पर निर्णायक के लिए आमंत्रित किया गया था और मैं खुश थी. 
            उसके ठीक कुछ दिन पहले ही २ सितम्बर को हम अपनी छोटी बेटी सोनू का दिल्ली में एडमिशन करवा कर आये थे. बड़ी बहन फ़ाइनल इयर की परीक्षा दे रही थी और इसने प्रवेश लिया. हॉस्टल नहीं मिला था सो बहन के साथ ही रह रही थी. कुल एक हफ्ता ही हुआ था कि उसको वहाँ पर बुखार और उलटी ने घेर लिया. पहले वही इलाज करवाया लेकिन जब स्थिति बहन के वश के बाहर हो गयी तो एक रात फ़ोन आया - 'पापा आप सोनू को यहाँ से ले जाइए, हम अब नहीं संभल पा रहे हैं, पेपर भी हो रहे हैं.' 
हम दोनों दूसरे ही दिन १० सितम्बर को जाकर उसे कानपुर ले कर आये. उसकी अपने से चलने की भी स्थिति नहीं रह गयी थी फिर भी ट्रेन में लिटा कर किसी तरह से कानपुर लाये और स्टेशन से ही ambulance से सीधे नर्सिंग होम ले गये. उसको डॉक्टर ने देखते ही HDU ( High Dependency Unit ) में भेज दिया. उस नर्सिंग होम से मेरे पतिदेव जुड़े हैं इस लिए सब कुछ घर जैसा ही था. दो दिन तक डॉक्टर ने प्रयास किया लेकिन हालात लगातार बिगडती जा रही थी और स्थिति ये कि उसके पूरे शरीर में मशीनें ही मशीनें  लगीं थी. हमारी नजर उस पर नहीं बल्कि  उसके शरीर से जुड़ी मशीनों पर रहती थी कि नाडी , ब्लड प्रेशर, दिल की धड़कन सब कैसे चल रहे हैं? फिर १४ सितम्बर का वह दिन डॉक्टर ने कहा - 'हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, अगर मनमोहन सिंह भी इस स्थिति में होते तो उनका भी यही सबसे अच्छा ट्रीटमेंट होता.' 
              किसी डॉक्टर का ये कथन मरीज के माँ बाप के लिए क्या हो सकता है? फिर वह बाप जो इन स्थितियों से रोज ही दो चार होता रहता हो. उसके प्लेटलेट्स बराबर गिर रहे थे और उसका ब्लड ग्रुप AB + था , फिर हमें फ्रेश प्लाज्मा ही चाहिए था.
इतना आसन नहीं होता कि इस तरह से ब्लड डोनर को खोजना. पहले डोनर थे मेरी बेटी के सहेली के मामाजी, लेकिन एक से क्या होता? उसी दिन आई आई टी से मेरी सहेली देखने के लिए आई और उनसे आई आई टी में ब्लड के लिए मर्सी अपील मेल भेजने के लिए कहा. उनके पतिदेव डॉ. के. के सक्सेना ने अपना संपर्क देकर मेल भिजवाई और फिर शायद ये हमारा भाग्य था कि वहाँ के छात्रों ने संपर्क किया और डॉ. सक्सेना उनको अपनी गाड़ी से लेकर मेडिकल कॉलेज तक लाते और ब्लड देने के बाद वापस ले जाते . प्लाज्मा मेरे पतिदेव वहाँ से नर्सिंग होम तक लाते . ये क्रम पूरे एक दिन चला शाम तक उसके प्लेटलेट्स गिरने कम हो गए और फिर देर रात एक बाद उनमें बढ़ोत्तरी होना शुरू हो गयी. हर आधे घंटे में ब्लड का सैम्पल लिया जाता था और उसकी सिसकी ही इस बाद की गवाह होती कि वो हमारे बीच है. फिर इस जंग से जीत की घोषणा डॉक्टर ने आकर की - 'अब हम जीत गए , सोनू के प्लेटलेट्स बढ़ने शुरू हो गए.' वहाँ से उसको लाने की स्थिति में हमें ३ दिन और लगे . हम १७ सितम्बर को सोनू को घर लेकर आये. इस बीच पूरे एक हफ्ते मैं ऐसे ही उसके सामने पड़ी एक कुर्सी पर बैठी रही शायद इस माँ की तपस्या पर भगवान को दया आ गयी और हम मौत के पंजों से अपनी बेटी को वापस ले आये .

19 टिप्‍पणियां:

राजेश उत्‍साही ने कहा…

मुबारक हो।

Udan Tashtari ने कहा…

जय हो!



हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

निर्मला कपिला ने कहा…

पूरा संस्मरण पढ कर राहत की साँस ली । बहुत बहुत बधाई। कुछ बातें शायद अधिकतर बातें बच्चों के साथ जुडी हुयी हम उम्र भर नही भूल पाते। आभार।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

maa ka pyar issi ko kahte hain....:) bachche ko jeevan de deta hai.....:)

hindi diwas ki shubhkamnayen!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत कठिन दौर से गुज़रीं आप उस वक्त ...

शोभना चौरे ने कहा…

परीक्षा की घडी में आपके धैर्य और ममता ने जीत दिलवाही दी |

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अच्छा संस्मरण...हिंदी तो अपनी मातृभाषा है, इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए. हिंदी दिवस पर ढेरों बधाइयाँ और प्यार !!
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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Aapka ssansmaran jeevan mein asha aur vishvaas ki jeet pragat karta hai ...
Aisi baaton ko bhulaana aasaan nahi hota ...

P.N. Subramanian ने कहा…

जीवन में कुछ ऐसी बातें होती हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता.

shikha varshney ने कहा…

बहुत कठिन दौर रहा होगा न ....

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप की पोस्ट पढ कर हमे अजीब सा लगा, चलिये भगवान की दया से सब ठीक हुआ, ऎसी बाते जिन्दगी भर याद रहती है, धन्यवाद

रचना दीक्षित ने कहा…

क्या कहूँ!!!!!! एक माँ हूँ सो एक गहरी साँस ले कर चुप हो गयी हूँ

Mahak ने कहा…

अंत भला तो सब भला

इस संस्मरण को हम सबके साथ बांटने के लिए आभार ,आपके ब्लॉग की हर पोस्ट अपने ब्लॉग के नाम को चरितार्थ करती है

महक

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कई बार ऐसे ही मौके आते हैं, जब इन्सान अपने आपको असहाय समझने लगता है, लेकिन विश्वास कभी नही खोना चाहिए. इतनी कठिन घड़ी बीत गई, अब उस समय को भी भुला दीजिये.

शिवम् मिश्रा ने कहा…


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

rashmi ravija ने कहा…

,ओह!! रोंगटे खड़े हो गए,पढ़ते हुए....किस दौर से गुजरी होंगी आप...पर आपके विश्वास और ममता की जीत हुई...बेटी सकुशल घर आ गयी.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

दुखद लेकिन अंत में सुकून दे गया आपका संमरण..

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

हार्दिक शुभकामनाएँ।
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प्यार का तावीज..
सर्प दंश से कैसे बचा जा सकता है?

Akanksha Yadav ने कहा…

बेटी वापस आई...जीवन में और क्या चाहिए.
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'शब्द-शिखर' पर बेटियों के प्रति नजरिया बदलने की जरुरत (डाटर्स-डे पर विशेष)