मौत से साक्षात्कार ! (2 )
जिंदगी देने वाले नेइंसान को कितनी साँसे दी हैं , यह तो वही जानता है। कभी एक झटके में वह जीवन छीन लेता है और कभी बड़े बड़े हादसों से बचा कर फिर जीने के लिए छोड़ देता है। मेरी जिंदगी का एक और हादसा जिसने मौत के मुँह से वापस लेकर खड़ा कर दिया था -
वाकया तब का है जब हम अपना घर बनवा कर आ गए थे क्योंकि ससुर जी ने प्लाट पहले ही लेकर छोड़ दिए थे क्योंकि यहाँ पर ज्यादा आबादी नहीं थी और न ही आने जाने के साधन थे। जब लोगों ने घर बनवाने शुरू किये तो हुआ कि कुछ बनवा कर चला जाय। उस समय मेरी साँस इस बात में लटकी हुई थी कि यहाँ से मेरे आईआईटी जाने के लिए कोई भी रास्ता नहीं था कोई भी साधन ऐसा नहीं था कि हम जा सकें। पतिदेव का टूरिंग जॉब था और मुझे तो महीने में २२ दिन जाना ही था। मैंने हिम्मत की और घर से करीब तीन किलोमीटर पैदल चलकर तब का डीपीआर जो कि जीटी रोड से लगा हुआ था। उसकी रेलवे क्रासिंग तक जाती तो मुझे करीब एक किमी जाकर वापस आना पड़ता और फिर टेम्पो में बैठ कर उल्टा चलकर आना होता, अतः एक मानव रहित क्रासिंग थी, जिससे सामान्यतः सब लोग निकल लेते थे और मैंने भी वही रास्ता चुना।
रोज आते जाते उतना पैदल चलने की आदत बन चुकी थी। पता नहीं उस समय की बात अब याद नहीं कि घर से किसी तनाव में निकली थी और वही सोचते सोचते क्रासिंग तक पहुँच गयी। कहीं नहीं देख रही थी और कुछ सुन भी नहीं रही थी। ट्रैन आ रही थी तो ट्रैक के उस पार लोग खड़े थे और इस पार भी। मैं अपनी ही घुन में बढती चली जा रही थी। ट्रैक उस तरफ खड़े लोगों ने चिल्लाना चूरू किया - रुक जाओ ट्रैन आ रही है। "
न मुझे कुछ सुनाई दे रहा था और न दिखाई, मैं बढती ही चली जा रही थी कि पीछे रुके हुए लोगों में से एक लड़के ने करीब छलांग लगते हुए मुझे पीछे खींचा तब मुझे होश आया कि सामने से ट्रेन गुजर रही है। उसके बाद सारा तनाव और बदहवासी चली गयी और मैं काँप रही थी। किसी ने रुक कर अपनी बोलल से पानी पिलाया और मैं अवाक् थी कि मौत कैसे सामने से गुजर गयी?
जो लोग इकट्ठे थे सब चिल्लाने लगे - 'मरना था क्या ?
'आत्महत्या करने जा रही थी। '
मेरे पास कोई उत्तर नहीं था।
जब कि कुछ दिन पहले ही ऐसा ही हादसा हुआ था मेरी भतीजी की क्लासमेट जो रोज उसी के साथ जाती थी लेकिन उसे दिन वह कुछ पहले मिकल गयी। मैं रस्ते में ही थी कि लोगों को कहते सुना कि स्कूल की यूनिफार्म में थी स्कूल जा रही थी। लेकिन ट्रेन से कटी नहीं बल्कि सिर्फ तेन के इतने करीब पहुँच गयी थी कि ट्रेन के लगे झटके से ही वह गिट्टियों में गिर कर नहीं रही थी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें