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शनिवार, 11 मई 2013

एक पाती माँ के नाम !

                      
चित्र गूगल के साभार 

                 
       माँ मेरी प्यारी माँ शायद तुम्हें मालूम भी नहीं होगा  कि आज "मातृ दिवस " है और मैं तुमसे बहुत दूर सात समंदर पार पड़ी हूँ  और आँसू बहा रही हूँ क्योंकि मैं तुमसे बात भी तो नहीं कर सकती हूँ .  उम्र के चलते  तुमको कम सुनाई देता है फिर भी तुमसे जब भी बात करती हूँ जो तुमको सुनाई दे गया उसका सही उत्तर दे दिया और जब तुम अपने दर्द को मुझसे बांटना चाहती हो तो कान लगा कर खड़ी  हुई तुम्हारी बहू सुन लेती है और फिर तुम्हारा मोबाइल जो मैंने तुम्हें बात करने के लिए देकर आई थी, उसको तुमसे छीन लिया और अपने पास रख लिया . ये यह सोच कर किया कि  कहीं उसकी अनुपस्थिति में तुम हम लोगों से अपने दिल की बात न कर लो . वैसे तो उसका पहरा रहता ही है . जो भी सुना उसको लेकर फिर खरी खोटी तो तुम्हें ही सुनना पड़ता है . ऐसा नहीं है कि  वे सब बातें मुझे पता नहीं लगती है . सब कुछ जान लेती हूँ , तुम्हारे दिल का दर्द और तुम्हारी तड़प मुझे भी महसूस होती है. 
                     मेरी मजबूरी ये है माँ कि मैं तुम्हें अपने पास नहीं ले जा सकती क्योंकि तुम इतनी दूर आना कभी नहीं चाहोगी क्योंकि अपनी वहां रहने वाली बेटियों के पास इसलिए नहीं जाती हो कि  कहीं उनके पास रहते हुए तुम्हें कुछ हो गया तो क्या होगा ? तुम अपने घर में ही आखिरी सांस लेना चाहती हो और बेटे के बिना तो माँ का काम हो ही नहीं सकता है . जब कि सब चाहते हैं तुम कहीं भी चली जाओ . हाँ घर से निकाल नहीं सकते क्योंकि अभी समाज का डर उनके मन में कहीं शेष है . घर के अन्दर समाज झांकने नहीं आता है लेकिन घर से कदम निकालने  पर सवाल खड़े हो जायेंगे . 
                   माँ जिस बेटे को बड़ा आदमी बनाने का तुम्हारा सपना तो पूरा हुआ लेकिन तेरे त्याग और तपस्या के साक्षी हम सब है लेकिन वह भूल गया . तुम्हारे संघर्ष को तुम्हारी बहू ने अपना हथियार बना लिया , मानो तेरे बेटे की तरक्की वह अपने साथ ही लायी थी . माँ मुझे सब कुछ पता चल जाता है , दूर हूँ तो क्या - मेरी आत्मा का तेरी आत्मा से सीधा रिश्ता है अगर तू तड़पती है तो मैं रात  भर सो नहीं पाती हूँ . 
                   माँ इतने बड़े सुसज्जित घर में तुम्हारे हिस्से में एक पीछे का कमरा आया है जिसमें सिर्फ एक खिड़की है . माँ इस भीषण गर्मी में तुम बगैर कूलर के कैसे रहती होगी ? बाकी  उनके कमरे में तो ए सी लगे हैं . ठन्डे पानी के लिए माँ तुम्हें क्या क्या करना पड़ता है ? एक बार मांग लिया तो फिर दुबारा जल्दी नहीं दे सकता है , जब कि  इस गरमी में तो पानी थोड़ी देर में गर्म हो जाता है और उस गर्म पानी के फेकने पर तुम्हें बातें सुनाई  जाती हैं,  जो तुम्हारी खुद्दारी को मंजूर नहीं।  इसलिए एक बार लिया हुआ पानी पीकर फिर उस बर्तन पर गीला कपड़ा लपेट कर रखती हो जिससे कि फिर एक बार और पी सको  . माँ तुम वही हो जो घर में आने वालों को गर्मी में ठन्डे पानी के साथ गुड या कुछ मीठा लेकर ही जाती थी . भले तब वह पानी घड़े का होता था . 
                  माँ तुम वही अन्नपूर्ण हो जिसे बचपन से हमने घर में इतने बड़े परिवार के लोगों को और साथ ही गाँव और रिश्तेदारों को खाना खिलाते हुए देखा है और चेहरे पर एक शिकन तक नहीं आती थी . कहाँ से सब मैनेज करती थी मेरी नजर से नहीं छुपा रहता था . कभी ज्यादा पैसे की जरूरत पड़ी तो बूढी काकी से लेकर फिर ब्याज सहित देते मैंने देखा था लेकिन कभी कोई कमी नहीं होने दी . चार चार बच्चों की फीस पढाई और फिर संयुक्त परिवार के खर्चे सब कितनी ख़ुशी से उठाया करती थीं . 
                  आज वे सभी कन्नी काट रहे हैं और तुम्हें लग रहा है कि  सब लोग तुम्हारा किया भूल गए नहीं माँ ऐसा नहीं है . सबको याद है वे अहसान फरामोश नहीं है लेकिन वे तुम्हारे बारे में कुछ गलत नहीं सुन पाते हैं क्योंकि कहने वाले से अधिक समय तक उन लोगों ने तुम्हारे साथ जीवन बिताया है . वे भी अब टूट चुके हैं . तुम्हारे पास आने से पहले उनका साक्षात्कार तुम्हारी बहू से होता है और फिर घंटों तुम्हारी कमियों और अवगुणों का बखान होता है उसके बाद तुम्हारे पास आ पाते हैं . इसी लिए माँ वे नहीं आते हैं भूला कोई भी नहीं है. 
                     मैंने जानती हूँ कि ये पाती तुम्हें मिलेगी नहीं क्योंकि अगर मैंने इसको पोस्ट कर दिया तो ये तुमसे पहले उनको मिलेगी और कोई और पढ़े और तुम्हारी मुसीबतें और बढा दें ये तो मैं आज के दिन कभी नहीं चाहूंगी . माँ मैं वह सब लिख रही हूँ जो मुझे पता है , अपने शब्दों में तुम्हारे दर्द को बयान कर रही हूँ और क्या पता है तुम्हें कि इसका एक एक शब्द लिखते हुए मेरे आंसुओं ने थमने का नाम नहीं लिया है . मैं कितनी विवश हूँ माँ ! तुम्हें कुछ भी दे नहीं सकती हूँ और अपने पास भी नहीं बुला सकती हूँ . मालूम मैं क्या चाहती हूँ ? सच कहूं - माँ अब ईश्वर  इस जीवन से मुक्त कर दूसरा जीवन दे . मुझे पता है कि ये सोचना एक बेटी के लिए कितना कठिन है लेकिन सच माँ तुम्हारे कष्ट को देखने से बेहतर तुम्हें उस कष्ट से मुक्त होते देखना है .  माँ मैंने इस मातृ दिवस पर सब कुछ कह दिया - तुम्हारे दिल तक मेरा सन्देश जरूर पहुँच गया होगा . माँ तेरा अंश हूँ तेरी आत्मा का अंश - इस अंश का तुम्हें शत शत नमन !

18 टिप्‍पणियां:

Arun sathi ने कहा…

मार्मिक पर यथार्थ

Sadhana Vaid ने कहा…

वर्तमान समय के कटु यथार्थ का हू ब हू सजीव चित्रण कर दिया रेखा जी ! बहुत ही मर्मस्पर्शी पाती है ! आँखें नम हो गयीं ! मातृ दिवस की आपको व सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनायें !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मर्मस्पशी सच.......

Saras ने कहा…

कितनी दुखद और भयावह स्तिथि है .....सुना तो था
सन इस सन टिल कम्स हिज वाईफ
डॉटर इस डॉटर आल द लाइफ ....
पर इतना स्वार्थी, अँधा और परवश कोई हो सकता है .....धिक्कार है ऐसी संतान पर ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (12-05-2013) मातृ दिवस विशेष चर्चा : चर्चा मंच १२४२ में "मयंक का कोना" पर भी है!
मातृदिवस की शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

क्या कहूँ -पत्र का सच मन पर आघात कर गया .कभी-कभी सोचती हूँ कि काम पूरा हो जाने के बाद फ़लतू हो जाने का बोध मन पर छाने लगे इतना आयु ईश्वर क्यों देता है!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मार्मिक ...
कटु सत्य लिखा है ... समाज ऐसा हो होता जा रहा है ... मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मन की कसक को कहती पाती ..... सच ही उम्र के इस पड़ाव पर आ कर यही कामना रहती है कि हम फालतू बोझ न बने ...... न जाने ईश्वर क्या चाहता है । भावुक करती पाती

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भावुक करती पाती .... उम्र के इस पड़ाव पर सच ही यही लगता है कि बस किसी पर बोझ न बने .... ईश्वर को क्या मंजूर है पता नहीं ।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

माँ के साये से रौशन हो जाता है बच्चों का जहां
वे बच्चे ही कद्र नहीं कर पाते
कोई बहू क्यूँ ऐसा हो हो जाती
मैं सोच नहीं पाती
माँ को नमन !!

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

माँ के साये से रौशन हो जाता है बच्चों का जहां
वे बच्चे ही कद्र नहीं कर पाते
कोई बहू क्यूँ ऐसा हो हो जाती
मैं सोच नहीं पाती
माँ को नमन !!

vandana gupta ने कहा…

बस निशब्द हूँ

रचना दीक्षित ने कहा…

यही यथार्थ है.

मातृ दिवस एवं परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ

Guzarish ने कहा…

नमस्कार !
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (13-05-2013) के माँ के लिए गुज़ारिश :चर्चा मंच 1243 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ |

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

katu satya .......

Pallavi saxena ने कहा…

ज़िंदगी की एक कड़वी सच्चाई का आईना दिखती अत्यान्त मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी पोस्ट... :(

nayee dunia ने कहा…

bahut harday sprshi rachna...

संध्या शर्मा ने कहा…

"सच माँ तुम्हारे कष्ट को देखने से बेहतर तुम्हें उस कष्ट से मुक्त होते देखना है"
ये वो शब्द है, जो एक बेटी की माँ के प्रति स्नेह की पराकाष्ठा है, जिसे कहते हुए उसकी आत्मा को कितना कष्ट हुआ होगा, इसे वही समझ सकती है .... आपकी भावनाओं को नमन