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मंगलवार, 31 मई 2011

मुश्किल है घर बचाना !

शिल्पी रेलवे में अधिकारी के पद पर काम कर रही है और उसको वहीं पर घर मिला हुआ है। कुछ जीवन की विसंगतियों की मारी वह अपने घर को बचाने के लिए जद्दोजहद में लगी है। ये यथार्थ शायद कई घरों का हो सकता है लेकिन क्या सिर्फ एक ही हाथ से ताली बजाई जा सकती है।
शिल्पी के पिता भी रेलवे में आफिसर थे, उनके चार बच्चों में शिल्पी तीसरे नंबर पर थी। कुछ अफसर होने का उनमें और कुछ बच्चों में घमंड तो था ही, उनके पिता मेरे चाचा के मित्रों में से थे और जब बचपन में मैं झाँसी जाती तो उनके यहाँ भी जाती। मैं उनको ताऊ और ताई ही कहा करती थी। फिर शादी के बाद सालों का अंतराल । चाचा रिटायर्ड हो गए और ताऊ जी भी नहीं रहे। घर भी दूर दूर हो गए ।
बहुत सालों बाद जाना हुआ चाचा जी से मिलने के लिए तो भाभी से सभी पुराने लोगों के बारे में पूछने लगी। तभी ताई जी का भी जिक्र आया और उनके बच्चों का भी। तभी पता चला कि बेटे दोनों अपने अपने परिवार के साथ रह रहे हैं और माँ बची तो छोटी बेटी के साथ रह रही है।
पहले ऑफिसर होने के नाते ये सोच थी कि लड़कियों की शादी किसी ऑफिसर से ही करेंगे लेकिन ऐसा संयोग न जुट सका। शिल्पी को उसके पापा ने रेलवे में परीक्षा दिलवा कर क्लर्क में लगवा दिया। लेकिन थी वह उच्च शिक्षित । बहुत परेशान होने के बाद उन्होंने उसी ऑफिस में एक क्लर्क लड़के से ही उसकी शादी कर दी। शिल्पी की ससुराल झाँसी के पास ही थी। तब उसके पिता थे तो वह अपने पति के साथ उसको मिले हुए मकान में रहने लगी। कुछ साल अच्छी तरह से बीते। वह दोनों ही परिवारों के साथ सामंजस्य बिठा कर रहती थी। अचानक उसके पापा का निधन हो गया और माँ उसके पास रहने आ गयी। यहाँ तक तो उसके पति को ठीक लगा लेकिन कुछ ही दिनों में विभागीय परीक्षा पास करके शिल्पी को पति से ऊँचा ग्रेड मिल गया और वह ऑफिसर रेंक में आ गयी।
यही उसके जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप बन गया। शिल्पी को उसकी रेंक के अनुसार ही सरकारी मकान मिल गया। पति से कहा कि हम उस घर में शिफ्ट हो लेते हैं लेकिन पति ने बड़े बेमन से ये स्वीकार किया और फिर कुछ ही महीने के बाद उसने अपने घर जाकर रहने का फैसला सुना दिया। वह अपने माँ बाप के पास जाकर रहने लगा और वहीं से अप डाउन करने लगा। । एक तो उसी ऑफिस में अफसर और क्लर्क का अंतर फिर पुरुषोचित अहम् के लिए ये कहाँ स्वीकार्य था? कुछ दिन शिल्पी ने इन्तजार किया कि वह ऑफिस से घर आएगा लेकिन नहीं वह ऑफिस से सीधे गाड़ी पकड़ कर अपने माँ बाप के शहर चला जाता । उसको मुश्किल से आधा घंटा लगता था । उसका पति हीन भावना का शिकार हो गया था । वह अपनी बीमार और बूढी माँ को छोड़ कर ससुराल रहने नहीं जा सकती थी और फिर उसके लिए अप डाउन संभव भी नहीं था।
उसको घर बचाना था इसलिए वह सन्डे की छुट्टी में ससुराल जाकर रहने लगी । माँ के लिए किसी की व्यवस्था करके वह चली जाती । इस तरह से कई महीने गुजर गए। उसने सोचा था कि वह पति के दिमाग से यह बात निकाल कर कि वह बंगला मुझे मिला है तो वह सिर्फ मेरा ही है उसको वापस ले आएगी , लेकिन उसकी सोच गलत निकली , वह अपने पति को नहीं समझा सकी और एक दिन हार कर वह बैठ गयी। उनके बीच में ऐसा कुछ भी नहीं था कि वे तलाक जैसी बात सोचते लेकिन पति की सोच के करण ही वह खुद भी तनाव में रहने लगी है। इसका कोई भी समाधान उसको समझ नहीं आ रहा है। बच्चे उनके हैं नहीं जिससे कि कोई डोर उसके पति को उसके पास खींच लाती। फिर वह क्या करे? कैसे बचाए अपने घर को? इस हीन भावना से कैसे मुक्ति दिलाये अपने पति को? उसका पति कभी इस वास्तविकता से समझौता कर पायेगा? ये ढेरों प्रश्न है जिनपर शिल्पी कि जिन्दगी टिकी हुई है। ये सिर्फ एक शिल्पी की समस्या नहीं है बल्कि और भी कई ऐसे परिवार हैं।

9 टिप्‍पणियां:

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

पत्नी का अपने से आगे बढ़ना बहुत कम पति स्वीकार कर पाते हैं !

shikha varshney ने कहा…

हमारे भारतीय समाज में यह समस्या सबसे ज्यादा आम और शायद सबसे जटिल है. ओहदा तो बहुत बड़ी बात है.भारतीय पुरुष पत्नी का ज़हनी तौर पर भी अपने से ऊपर होना बर्दाश्त नहीं कर पाते.

Kailash Sharma ने कहा…

पत्नी को अपने से आगे बढते बहुत कम पुरुष देख पाते हैं...जब तक पति के अंदर अपना बड़ा होने की मानसिकता रहेगी, यह समस्या यूं ही सर उठाती रहेगी..

राज भाटिय़ा ने कहा…

पता नही क्यो हमारे भारतिया समाज मे लोग ऎसी बाते सोचते हे, यहां युरोप मे पत्नी डाकटर होती हे तो पति टेक्सी डराईवर होता हे, दोनो मे कोई हीन भावना नही, लेकिन हम जन्म से ही सीकते हे इन बातो को इस लिये यह सोच दिमाग से निकाल पाना आस्म्भव हे, लेकिन हम अपने बच्चो के दिमाग मे यह जहर ना भरे, उन्हे यही सीखाये की हम सब बराबर हे, आप का लेख पढ कर शिल्पी के भविष्या के बारे सोच कर डर लगता हे

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

yahi to hamari trasdi hai ki ham apani purush satta ke aham se mukt nahin ho pa rahe hain bhale hi usake liye ghar toot jaye.

कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन ने कहा…

शादी और दोस्ती बराबर वालों में ही निभती है
अब जब शिल्पी अधिकारी हो गयी है तो उसके पति को सहज स्वीकार कर लेना चाहिए और पत्नी पर गर्व का भाव रखे इससे दोनों में प्रीत और सम्मान बना रहेगा.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

sayad sach hai ye...!
ham kitna bhi soch le....khud ko apne wife se peeche bardast nahi kar paate..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

समस्या का समाधान निकल आये तो अच्छी बात है!

रचना दीक्षित ने कहा…

अच्छा विषय उठाया है. बधाई.