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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

मुँह छिपाना पड़ता है!

                  पिछली पोस्ट में तो अपने बीच रहने वाले कुछ अनजाने चेहरे की छवि को देखा लेकिन ऐसे काम हमें तब शर्मिंदा कर देते हैं जब कि हम उसमें कोई भागीदारी  नहीं रखते हैं. पर अपना चेहरा नहीं दिखा पाते हैं दूसरों के कर्मों से. जिनसे हमारा कोई लेना देना नहीं है लेकिन वे हमारे भाई हैं इसलिए और सिर्फ इसलिए शर्मिंदगी हमें घेर लेती है.
                         कुछ साल पहले तक कानपुर में दंगे हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी. इधर कुछ वर्षों से शांति है और ईश्वर करे कि ये शांति हमेशा बरक़रार रहे. एक बार के दंगों के बाद की बात है - दंगे ख़त्म हो गए लेकिन मेरे पति के एक बचपन के दोस्त है - जावेद हुसैन वारसी. वे बैंक में काम करते हैं . मैंने तो अपनी शादी के बाद ही जाना कि ऐसी दोस्ती होती है, जावेद भाई की अम्मी जब तक रही मुझे बहू माना (जावेद भाई की शादी काफी बाद में हुई) . हर सुख दुःख बाँटते रहे हैं. अम्मी को कैंसर हुआ तो जावेद भाई को चिंता नहीं थी सब आदित्य देख लेंगे दिन में कुछ घंटे मुक़र्रर थे कि इनको अम्मी  के पास रहना ही है. कभी तकलीफ बढ़ी तो फ़ोन आ जाता और फिर हम लोग हाजिर. अगर मेरे ससुर जी अस्पताल में हैं तो फिर खाना घर से नहीं बल्कि जावेद भाई के घर से आता. बाकी सारी चीजें भी वही से. ऐसा नहीं  जावेद भाई भी मेरी सास के दुलारे हैं और अब जब कि उनको दिखाई कम देता है सुनाई भी नहीं देता लेकिन अगर जावेद भाई आ कर खड़े हो जाएँ तो तुरंत पहचान लेंगी.
                    कोई भी सुख दुःख हो रिश्तेदारों को बाद में पहले इधर की खब़र जावेद भाई को और वहाँ की खबर हमारे घर आती है.
               एक बार दंगों के बाद बहुत दिनों तक जावेद भाई का कोई फ़ोन नहीं कोई खबर नहीं. मेरे पतिदेव को अधिकारवश गुस्सा जल्दी आता है तो कहने लगे कि इसने इतने दिनों से कोई खबर नहीं ली. मैं भी नहीं करूंगा फ़ोन. मुझे लगा कि हो सकता है  कुछ गड़बड़ न हो.
                मैंने इनसे चुपचाप जावेद भाई को फ़ोन किया तो पता चला कि बेटे कि तबियत ख़राब है और हम लोगों को खबर नहीं , ये पूरी दोस्ती में पहली बार हुआ और वह भी तब जब कि उनका बेटा इनका बहुत दुलारा है.  मैंने इनको बताया. हम दोनों जावेद भाई के घर पहुंचे. इनकी तो गुस्सा काबू में नहीं - 'तुमने समझ क्या रखा है. ताबिश की इतनी तबियत ख़राब और मुझे खबर तक नहीं दी. तुमने क्या सोचा? क्यों नहीं दी मुझको खबर अगर इसके तकलीफ होती है तो मुझे नहीं होती. ये तुम्हें पता है कि मेरा बेटा है. ( जावेद भाई का बेटा उनकी बड़ी बेटी के १४ साल बाद हुआ और उनकी पत्नी की बीमारी के लिए उन्हें मेरे पति के सहयोग से ही रोग का पता चला और उसके बाद बेटा हुआ सो वह इनका बेटा कहा जाता है.)
                 जावेद भाई सिर झुकाए कुछ बोले नहीं, फिर हिम्मत करके बोले - 'आदित्य इस दौरान जो हादसे हुए उसके बाद मेरी हिम्मत तुमसे बात करने की नहीं हुई , पता नहीं तुम क्या सोचो मेरे बारे में.' उनका गला भर्रा गया था. ' और फिर दोनों मित्र गले लग कर रो पड़े.
                'अरे , तुमने  ये सोचा भी कैसे ? हम दो कब हैं, फिछले ५० साल की दोस्ती में बस इतना ही समझा तुमने.'
             उन लोगों कि प्यार भरी लड़ाई और रोना देख कर हमारी भी आँखें भर आयीं थी. तब से आज तक चाहे कुछ भी हो, उनकी दोस्ती वहीं है. बस एक बार कैसे जावेद भाई को ये अहसास हुआ? ये मैं नहीं जानती लेकिन ईश्वर ये प्रार्थना है की ऐसा प्यार सभी दोस्तों में हो.

18 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दोस्ती हो तो ऐसी...आँखें छलक आयीं...इसी प्यार और मोहब्बत और आपसी भाई चारे के कारण ही अलगाव वादी लाख कोशिशें कर के भी सफल नहीं हो पाते...बहुत अच्छी पोस्ट.

नीरज

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दोस्ती हो तो ऐसी ...बहुत प्रेरणादायक पोस्ट ...

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

रेखा जी, बहुत प्‍यारी बात कही आपने। आमीन।

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त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।

vandana gupta ने कहा…

दोस्ती का सच्चा जज़्बा ऐसा ही होता है।ये दोस्ती हमेशा बनी रहे।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...

http://charchamanch.uchcharan.com
.

shikha varshney ने कहा…

प्रेम से औत प्रोत पोस्ट..बहुत ही प्यारी.

राजेश उत्‍साही ने कहा…

रेखा जी आपकी यह पोस्‍ट पिछली पोस्‍ट की भरपाई जैसी है। इस पोस्‍ट से उन लोगों को सबक लेना च‍ाहिए जो किसी संप्रदाय विशेष के बारे में पूर्वाग्रह लेकर बैठे हैं। बुरी आदतें,बुरे विचार और बुरे लोग किसी भी संप्रदाय में हो सकते हैं। ऐसी दोस्‍तियां बहुत से लोगों के बीच हैं,और यही हमें जीवन को एक सार्थक तरीके से देखने का नजरिया देता है।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ!

बधाई...!

राज भाटिय़ा ने कहा…

दोस्ती मे धर्म नही देखा जाता, बहुत अच्छी लगी आप की ज़ह दोस्ती की पोस्ट आंखे भर आई, धनयवाद

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत प्रेरणादायक पोस्ट !!

वाणी गीत ने कहा…

ऐसे लोंग ,ऐसी दोस्तियाँ ही हैं जो हमारे विश्वास को अटल बनाये रखने में मददगार होते हैं ...
अविश्वास के माहौल में एक सार्थक पोस्ट !

ashish ने कहा…

पढ़ के आँखे नम हो गयी .

अनुपमा पाठक ने कहा…

sach! aisi dosti sabhi mein ho!
sundar lekhan!

P.N. Subramanian ने कहा…

प्रेरणादायी पोस्ट.

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

बहुत ही अच्छा.....मेरा ब्लागः-"काव्य-कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ ....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dosti jindabad!!!!!

hot girl ने कहा…

nice.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सचमुच, दोस्‍ती हो तो ऐसी।

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आपका सुनहरा भविष्‍यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्‍या जानते हैं?