उम्र खर्च हो गयी
बिना सोचे-समझे,
बहुत पैसे कमाने के लिए।
धनी आज बहुत हैं,
रखने की जगह नहीं,
बस चुप हो गया।
वक़्त ही नहीं मिला संभालें,
जैसे भी थे, कुछ तो करीब थे।
कम अमीर थे,
लेकिन दिल से अनमोल थे,
तब शायद हम खुशनसीब थे।
'यथार्थ ' कुछ ऐसे कटु और मधुर अनुभव जो वक़्त ने दिए और जिनसे कुछ मिला है. लोगों को पहचाना है. दोहरे जीवन और मानदंड जीने वालों के साथ का अनुभव या यथार्थ के साथ जीने के क्षण.