कहते है न कि कुछ चीजें इंसान अपनी मेहनत और प्रयास से हासिल कर लेता है लेकिन कुछ वह चाह कर भी नहीं पा सकता है। मुझे २३ साल पहले तो पापा के निधन की खबर तक नहीं मिली क्योंकि उस समय फ़ोन इतने कॉमन नहीं थे। टेलीग्राम ही एक मात्र साधन थे।वह भी मुझे आज तक नहीं मिला। दो दिन तक नहीं पहुंची तब भाई साहब ने किसी भेज कर सूचित करवाया। उनके अंतिम दर्शन तो बहुत बड़ी बात है। जब कि कानपूर और उरई के बीच २०० किमी का फासला था। कुछ हालात भी ऐसे थे।
लेकिन माँ के अंतिम समय मेरा उनके पास न होना मेरा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। माँ दो महीने से हाथ में फ्रैक्चर के कारण बिस्तर पर थीं और मैं भी पिछले मातृ दिवस से हर माह चाहे दो दिन के लिए ही सही उनके पास जा रही थी। जो कि मेरी शादी ३४ वर्षों में ऐसा पहली बार हो रहा था। मैं ९ अगस्त को उनके पास से आई थी। उनके स्वास्थ्य की खबर रोज लेती रहती थी।
१२ सितम्बर को मेरी उनसे बात हुई और मैंने उन्हें बताया कि मैं १४ को आ रही हूँ और १२ को ही अपनी छोटी बहन को इलाहबाद फ़ोन किया कि तुम भी आ जाओ संडे को मैं माँ के पास जा रही हूँ दोनों साथ चलते हैं। वो मेरे पास शनिवार को आ गयी और हमें दूसरे दिन जाना था। शनिवार की रात पतिदेव को बुखार आ गया तो मैंने उसे भेज दिया कि मैं तबियत ठीक होते ही आती हूँ। बहन पहुँच गयी और माँ ने उससे यही सवाल किया ' रेखा नहीं आई। ' उसने कहा ,' जीजाजी तबियत ख़राब हो गयी वह एक दो दिन में आ जाएंगी।'
लेकिन वह दिन आया ही नहीं उन्होंने मेरा इन्तजार नहीं किया और सोमवार की सुबह चल दीं। मैं पहुंची लेकिन उनके अंतिम दर्शन ही मिले वो नहीं। इसे मैं अपना दुर्भाग्य ही मानती हूँ कि विधि ने ऐसी रचना रची कि मैं जा ही नहीं सकी।
लेकिन माँ के अंतिम समय मेरा उनके पास न होना मेरा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। माँ दो महीने से हाथ में फ्रैक्चर के कारण बिस्तर पर थीं और मैं भी पिछले मातृ दिवस से हर माह चाहे दो दिन के लिए ही सही उनके पास जा रही थी। जो कि मेरी शादी ३४ वर्षों में ऐसा पहली बार हो रहा था। मैं ९ अगस्त को उनके पास से आई थी। उनके स्वास्थ्य की खबर रोज लेती रहती थी।
१२ सितम्बर को मेरी उनसे बात हुई और मैंने उन्हें बताया कि मैं १४ को आ रही हूँ और १२ को ही अपनी छोटी बहन को इलाहबाद फ़ोन किया कि तुम भी आ जाओ संडे को मैं माँ के पास जा रही हूँ दोनों साथ चलते हैं। वो मेरे पास शनिवार को आ गयी और हमें दूसरे दिन जाना था। शनिवार की रात पतिदेव को बुखार आ गया तो मैंने उसे भेज दिया कि मैं तबियत ठीक होते ही आती हूँ। बहन पहुँच गयी और माँ ने उससे यही सवाल किया ' रेखा नहीं आई। ' उसने कहा ,' जीजाजी तबियत ख़राब हो गयी वह एक दो दिन में आ जाएंगी।'
लेकिन वह दिन आया ही नहीं उन्होंने मेरा इन्तजार नहीं किया और सोमवार की सुबह चल दीं। मैं पहुंची लेकिन उनके अंतिम दर्शन ही मिले वो नहीं। इसे मैं अपना दुर्भाग्य ही मानती हूँ कि विधि ने ऐसी रचना रची कि मैं जा ही नहीं सकी।